झारखंड की माटी ने आज अपने धरती आबा — महान स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी। राज्यपाल संतोष गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ गांडेय विधायक कल्पना सोरेन ने रांची में उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया। बिरसा मुंडा न केवल एक आदिवासी नायक थे, बल्कि वे आज़ादी की चेतना के अग्रदूत भी रहे।
कौन थे धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा
15 नवंबर 1875 को झारखंड की धरती पर जन्मे बिरसा मुंडा ने अपने छोटे-से जीवन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ आदिवासी जनजातियों को संगठित कर उलगुलान (क्रांति) का नेतृत्व किया।
महज 25 वर्ष की आयु में 9 जून 1900 को ब्रिटिश हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई थी, लेकिन उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गया।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने कहा
राज्यपाल संतोष गंगवार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा:
“आदिवासी पहचान, संस्कृति और स्वाभिमान के प्रतीक भगवान बिरसा मुंडा जी की पुण्यतिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं और अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने मातृभूमि की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।”
उन्होंने राजभवन और कोकर स्थित स्मारक स्थल पर जाकर बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची स्थित बिरसा चौक पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए और कहा:
“अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान (क्रांति) का नेतृत्व करने वाले धरती आबा के आदर्श भावी पीढ़ियों को देशभक्ति और अन्याय के खिलाफ संघर्ष का मार्ग दिखाते रहेंगे।”
आज जब देश आदिवासी अधिकारों, संस्कृति की रक्षा और स्थानीय स्वशासन की बात कर रहा है, तो बिरसा मुंडा का विचार और संघर्ष और भी प्रासंगिक हो जाता है। वे न केवल आंदोलन के नेता थे, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत भी बने।