लंबी दूरी के साथ जिले को राजधानी रायपुर व न्यायधानी बिलासपुर से चलने वाली एक भी गाड़ी अपने निर्धारित समय पर नहीं चल रही है। इन गाड़ियों के विलंब होने का औसत समय 2-3 घंटे का बना हुआ है। कभी कभी तो गाड़ियों के विलंब होने का समय 5-7 घंटे तक भी पहुंच जाता है। लंबी दूरी की गाड़ियां जो अपने निर्धारित समय पर चल रही होती है। बिलासपुर जोन में प्रवेश करते ही उनकी भी चाल बिगड़ जाती है।
ऐसे में अगर कोई गाड़ी अपने प्रारंभिक स्टेशन से थोड़ा भी देरी से रवाना होती है तो उसके यहां पहुंचने का समय काफी बढ़ जाता है। क्योंकि रायपुर से बिलासपुर व बिलासपुर से कोरबा के बीच कुछ चुनिंदा स्थानों पर गाड़ियों को घंटों रोकना मानो अनिवार्य सा हो गया है। बुधवार की रात व सोमवार को दोपहर तक कोरबा आने वाली 7 एक्सप्रेस व पैसेंजर गाड़ियों की टाइमिंग देखा गया तो पता चला कि एक भी गाड़ी अपने निर्धारित समय पर नहीं पहुंची। सबसे अधिक करीब 3 घंटा लेट वैनगंगा व शिवनाथ एक्सप्रेस रही तो 2-2 घंटा की देरी से लिंक एक्सप्रेस, हसदेव एक्सप्रेस व रायपुर-कोरबा पैसेंजर व बिलासपुर मेमू रहीं। विलंब से चलने का खामियाजा सफर करने वाले यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।
यहां पर रेलवे ने बना दिए अघोषित स्टॉपेज
- रायपुर से भाटापारा के बीच
- दाधापारा व बिलासपुर के बीच
- बिलासपुर व जयरामनगर के बीच
- जयरामनगर व अकलतरा के बीच
- मड़वारानी से कोरबा के बीच
केंद्र से कोयला डिस्पैच करने का दबाव ज्यादा, इसलिए विलंब
रेलवे प्रबंधन के अनुसार केन्द्र से अधिक से अधिक कोयला डिस्पैच का दबाव रहता है। इसके कारण कोरबा की कोयला खदानों से अधिक से अधिक कोयला मालगाड़ी के माध्यम से डिस्पैच किया जा रहा है। इसके कारण रूट में जहां भी जरूरत होती है, वहां पैसेंजर ट्रेन को रोक कर मालगाड़ी को आगे पास दे दिया जाता है। हालांकि यह बात रेलवे के किसी अधिकारी द्वारा अधिकृत रूप से नहीं कही जाती है, जबकि सच्चाई यही है। कोरबा से रोजाना 45 रैक कोयला डिस्पैच का औसत बना हुआ है। यह आंकड़ा बीच बीच में बढ़ता रहता है।