केंद्र सरकार द्वारा भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था – एफएमआर (Free Movement Regime) को समाप्त करने के निर्णय ने कुकी संगठनों (Kuki organizations) में असंतोष पैदा कर दिया है। ‘कुकी आईएनपीआई (कुकी इंपी – Kuki Inpi) ’ और ‘कुकी चीफ्स एसोसिएशन (Kuki Chiefs’ Association)’ ने इसे सीमावर्ती समुदायों के सांस्कृतिक, पारंपरिक और ऐतिहासिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए विरोध प्रकट किया है।
सरकार का एफएमआर समाप्त करने का निर्णय और बाड़ लगाने का प्रस्ताव
इस वर्ष की शुरुआत में, केंद्र सरकार ने भारत-म्यांमार सीमा के पास रहने वाले लोगों के लिए बिना वीजा के 16 किलोमीटर तक जाने की सुविधा देने वाले एफएमआर (Free Movement Regime) को रद्द करने का निर्णय लिया। इसके अलावा, 1,643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा, जो मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से लगती है, पर बाड़ लगाने की योजना भी बनाई जा रही है।
सरकार का उद्देश्य यह है कि सीमा पर सुरक्षा और नियंत्रण बढ़ाया जाए ताकि अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके। लेकिन कुकी संगठनों का मानना है कि यह निर्णय दोनों देशों में बसे समुदायों के अधिकारों को नुकसान पहुंचा सकता है।
सीमावर्ती संबंधों को बनाये रखने में एफएमआर – FMR (Free Movement Regime) का महत्व
कुकी-जो समुदाय के प्रमुख संगठनों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि भारत-म्यांमार सीमा के निकट बसे समुदायों के लिए एक-दूसरे के क्षेत्र में आसानी से आ-जा सकने की सुविधा उनके पारिवारिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच इस आवाजाही को संगठनों ने “जीवनरेखा” की तरह बताया, जो इस अनूठे क्षेत्र की परंपराओं और सामाजिक संरचना को संजोए रखने में मदद करती है।
बाड़बंदी से संभावित प्रभाव: विभाजन और संस्कृति पर संकट
कुकी संगठनों (Kuki organizations) ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सीमा पर बाड़ लगाने से वहां के लोगों के बीच पारंपरिक संबंध टूट सकते हैं। बयान में कहा गया कि सीमा पर कृत्रिम अवरोध खड़े करने से परिवारों के बीच दूरी बढ़ेगी और सामुदायिक परंपराओं को बनाए रखने में भी कठिनाई हो सकती है। उन्होंने इसे एक सांस्कृतिक संकट के रूप में देखा है, जो इस क्षेत्र की पहचान को ही खतरे में डाल सकता है।
सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों का हनन
कुकी संगठनों (Kuki organizations) ने अपने बयान में कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों की पारंपरिक भूमि और पारिवारिक संबंध इस क्षेत्र के लोगों की संस्कृति और जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे मानते हैं कि बाड़ लगाने के प्रस्ताव से इन लोगों के पारंपरिक अधिकारों का हनन हो सकता है और सांस्कृतिक मूल्यों को सुरक्षित रखना कठिन हो सकता है।